lighting the lamp of heart with wick of love and oil of trust holding sparkles in the eyes diwali unfolds the darkness with hope burning the wicked and crooked let the world glow in realms of peace let the people raise in land of harmony
कितनी बार तुम्हें देखा पर आंखों नही भारी शब्द रूप रस गन्ध तुम्हारी कण कण मे बिखरी मिलन सांझ कि लाज सुनहरी उशा बन निकारी हाय गुण गुन्थाने कि है क्रम मै कलिका खिली झरी बार बार हारी, किन्तु रह गई रीती है गगरी कितने बार तुम्हें देखा पर आँख नही भरी