आँख नही भरी
कितनी बार तुम्हें
देखा
पर आंखों नही भारी
शब्द रूप रस गन्ध
तुम्हारी
कण कण मे बिखरी
मिलन सांझ कि लाज
सुनहरी
उशा बन निकारी
हाय गुण गुन्थाने
कि है क्रम मै
कलिका खिली झरी
बार बार हारी,
किन्तु रह गई
रीती है गगरी
कितने बार तुम्हें
देखा
पर आँख नही भरी
Comments