नक़ाब


हर दिन हम घरसे एक नक़ाब पहनके निकलते है
चहरे पे अपनी एक नकली हँसी बनाके निकलते है

दिल को बंध कमरे में रक् कर
जीह पे एक ताला लगाकर
खालीपन को लेकर हम लोगोंसे मिलने निकलते है

न कोई प्यार का रिश्ता है न कोई अटूट बंधन
हर रिश्ता को हम तोल मोलके निबाते है
वक़्त के सात सात हम रिश्ता बदलते है

न कोई दिलकी भाशा है न कोई मीटी बातें
हर बात को एक बोली लगाके कहते है
मतलब से हम अपना जीब बदलते है

दूसोरोंका फिकर हम क्यों करे भय्या...
अपनी ही बलाई में हम डूबे रहते है

आज कल ...दुनियादारी कुछ ऐसी होगई है
इनसानियत की वजूद कही कोगई है

अब न हम सच्छा है...
न हमारी जिन्दगी सच्छा
नकलीपण अपनी कण कण में बरा है

पर्यावरण शोधना तो दूर की बात है
अब इनसानियत की शोधना जरूरी है
लोगोंकी सोंच में परिवर्तन की जरूरी है

कुछ सच्छाई... कुछ अच्छाई अपना के
इनसान बनके …जीनेकी जरूरी है
इनसान बनके …जीनेकी जरूरी है

Comments

Popular posts from this blog

A song very close to my heart.....

Friends are like memories